IGNOU BHDC-133 (July 2024 - January 2025) Assignment Questions
खंड - क
निम्नलिखित पद्यांशों की ससंदर्भ व्याख्या कीजिये :
1. भीतर भीतर सब रस चूसै ।
हंसिहंसि के तन मन धन मूँसे ।
जाहिर बातन में अति तेज
क्यों सखि साजन नहीं अंग्रेज ।
2. सिद्धि हेतु स्वामी गए, यह गौरव की बात,
पर चोरी-चोरी गए, यही बड़ा व्याघात,
सखी, वे मझु से कह कर जाते
कह, तो क्या मुझसे वे अपनी पथ-बाधा ही पाते ?
3. कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बँधा यौवन,
नत नयन, प्रिय कर्मरत मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार-
सामने तरु-मालिका अट्टालिका प्राकार ।
4. न जाने, तपक तड़ित में कौन
मुझे इंगित करता तब मौन ।
देख वसुधा का यौवन भार
गूँज उठता है जब मधुमास,
विधुर उर के-से मृदु उदगार
कुसुम जब खुल पड़ते सोच्छ्वास
न जाने, सौरभ के मिस कौन
सँदशा मुझे भेजता मौन ।
खंड - ख
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 500 शब्दों में दीजिए :
5. भारतेन्दु हरिश्चद्रं के काव्य शिल्प पर प्रकाश डालिए ।
6. द्विवेदी युगीन कविता के प्रदेय पर विचार कीजिये?
7. जयशंकर प्रसाद की कविता में प्रकृति और मानवता के स्वरूप का विवेचन कीजिये ।
8. पंत की काव्य चेतना के विकास का वर्णन कीजिये ।
खंड - ग
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए :
9. 'प्रियप्रवास' का मलू प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिये ।
10. मैथिलीशरण गुप्त की कविता में नारी सम्मान की भावना पर विचार कीजिये ।
11. रामनरेश त्रिपाठी की राष्ट्रीय चेतना पर प्रकाश डालिए ।
12. 'मैं नीर भरी दुख की बदली कविता का मूल भाव क्या है ?
IGNOU BHDC-133 (July 2023 - January 2024) Assignment Questions
खंड - क
निम्नलिखित पद्यांशों की ससंदर्भ व्याख्या कीजिये
1. प्रेम में मीन मेष कछू नाहिं ।
अति ही सरल पंथ यह सूधो छल नहिं जाके माही ।
हिंसा द्वैष इरखा मत्सर मद स्वास्थ की बातै।
कबहूँ याके निकट न आवै छल प्रपंच की धातै ।
सहज सुभाविक रहनि प्रेम की प्रीतम सुख सुखकारी।
अपुनो कोटि कोटि सुख पिय के तिनकहि पर बलिहारी ।
जहँ ने ज्ञान अभिमान नेम व्रत विशय वासना आवै ।
रीझ खीज दोऊ पीतम की मन आनंद बढ़ावै ।
परमारथ स्वास्थ दोऊ पीतम और जगत नहिं जाने।
हरिश्चंद यह प्रेम रीति कोउ विरले ही पहिचाने।
2. स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण में-
क्षात्र धर्म के नाते ।
सखि, वे मुझसे कह कर जाते।
हुआ न यह भी भाग्य अभागा
किस पर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा,
रहे स्मरण ही आते ।
सखि, वे मुझसे कह कर जाते ।
3. संध्या सुन्दरी
दिवसावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही है
वह सन्ध्या-सुन्दरी परी सी
धीरे धीरे धीरे
तिमिराञ्चल में चञ्चलता का नहीं कहीं आभास,
मधुर मधुर हैं दोनों उसके अधर,
किन्तु गम्भीर नहीं है उनमें हास - विलास ।
हंसता है तो केवल तारा एक
गुँथा हुआ उन घुँघराले काले बालों से,
हृदय-राज्य की रानी का वह करता है अभिषेक ।
4. मैं क्षितिज भृकुटि पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,
रज- कण पर जल-कण हो बरसी
नवजीवन - अंकुर बन निकली !
पथ को न मलिन करता आना,
पद-चिह्न न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में
सुख की सिहरन हो अंत खिली
विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली !
खंड - ख
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 500 शब्दों में दीजिए:
5. भारतेंदु युगीन काव्य की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए ।
6. हरिऔध के साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियों को रेखांकित कीजिए।
7. रामनरेश त्रिपाठी के रचना संसार पर प्रकाश डालिए ।
8. महादेवी वर्मा की कविता के अंतर्वस्तु की चर्चा कीजिए।
खंड - ग
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए:
9. भारतेंदु के छंद विधान पर प्रकाश डालिए।
10. जयशंकर प्रसाद की राष्ट्रीय चेतना को स्पष्ट कीजिए।
11. संध्या सुंदरी' कविता का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए ।
12. मौन निमंत्रण' कविता का विश्लेषण करते हुए उसके मंतव्य को स्पष्ट कीजिए ।
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