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IGNOU BHDE-142 - Rashtriya Kavyadhara

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राष्ट्रीय काव्यधारा

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IGNOU BHDE-142 Code Details

  • University IGNOU (Indira Gandhi National Open University)
  • Title राष्ट्रीय काव्यधारा
  • Language(s) Hindi
  • Code BHDE-142
  • Subject Hindi
  • Degree(s) BAG, BA (Honours), BAHDH
  • Course Discipline Specific Electives (DSE)

IGNOU BHDE-142 Hindi Topics Covered

Block 1 - राष्ट्रीय काव्यधारा

  • Unit 1 - आधुनिक युग की भूमिका
  • Unit 2 - आधुनिक युगीन परिस्थितियाँ
  • Unit 3 - आधुनिक युग का वैचारिक आधार
  • Unit 4 - राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन का विकास
  • Unit 5 - नवजागरण और राष्ट्रीय चेतना का विकास
  • Unit 6 - भारतीय साहित्य में नवजागरण एवं राष्ट्रीय चेतना की अभिव्यक्ति
  • Unit 7 - राष्ट्रीयता के विकास में आधुनिक भारतीय साहित्य का योगदान

Block 2 - राष्ट्रीय काव्यधारा

  • Unit 1 - मैथिलीशरण गुप्त और उनकी कविता
  • Unit 2 - माखनलाल चतुर्वेदी और उनकी कविता
  • Unit 3 - सुभद्रा कुमारी चौहान और उनकी कविता
  • Unit 4 - बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ और उनकी कविता
  • Unit 5 - रामधारी सिंह दिनकर और उनकी कविता
  • Unit 6 - श्यामनारायण पाण्डेय और उनकी कविता

Block 3 - राष्ट्रीय काव्यधारा

  • Unit 1 - काव्य वाचन एवं विश्लेषणः भारतवर्ष की श्रेष्ठता, हमारा उद्भव, हमारे पूर्वज, आर्य स्त्रियाँ
  • Unit 2 - काव्य वाचन एवं विश्लेषणः हमारी सभ्यता
  • Unit 3 - काव्य वाचन एवं विश्लेषणः पुष्प की अभिलाषा, कैदी और कोकिला
  • Unit 4 - काव्य वाचन एवं विश्लेषणः प्यारे भारत देश, अमर राष्ट्र, दीप से दीप जले
  • Unit 5 - काव्य वाचन एवं विश्लेषणः झाँसी की रानी
  • Unit 6 - काव्य वाचन एवं विश्लेषणः विप्लव गायन
  • Unit 7 - काव्य वाचन एवं विश्लेषणः हिमालय, समर शेष है, कलम आज उनकी जय बोल
  • Unit 8 - काव्य वाचन एवं विश्लेषणः हल्दीघाटी ‘द्वादस सर्ग’
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IGNOU BHDE-142 (July 2024 - January 2025) Assignment Questions

खंड - क निम्नलिखित पद्यांशों की ससंदर्भ व्याख्या कीजिये : 1. उनके अलौकिक दर्शनों से दूर होता पाप था अति पुण्य मिलता था तथा मिटता हृदय का ताप था । उपदेश उनके शान्तिकारक थे निवारक शौक के सब लोक उनका भक्त था, वे थे हितैषी लोक के ।। 2. चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ । चाह नहीं, प्रेमी - माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ ।। चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ । चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ, भाग्य पर इठलाऊँ ।। मुझे तोड़ लेना वनमाली । उस पथ पर देना तुम फेंक ।। मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने । जिस पथ पर जावें वीर अनेक ।। 3. उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियारी छाई किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई। निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। 4. आज मुक्ति के अरमानों ने मिलकर यों ललकारा है ओ सब सोनेवालो, जागो गूँज रहा नक्कारा है ! कैसी रात ? कहाँ के सपने यह नव प्रभात पधारा है! ऐसे हँसते-से प्रभात का तुम करने सम्मान, उठो उठो, उठो ओ नंगों भूखें ओ मजदूर किसान उठो । खंड - ख निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 500 शब्दों में दीजिए : 5. स्वाधीनता संग्राम के संदर्भ में राष्ट्रीय चेतना के विकास को रेखांकित कीजिए । 6. आधुनिक भारतीय साहित्य की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए नवजागरण की विशेषताओं की चर्चा कीजिए । 7. राष्ट्रीयता के विकास में भारतीय कविता के योगदान पर प्रकाश डालिए । 8. मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में निहित नारी सम्मान की भावना को रेखांकित कीजिए । खंड - ग निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए : 9. सुभद्रा कुमारी चौहान का साहित्यिक परिचय दीजिए । 10. 'विप्लव गायन' कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए । 11. 'हिमालय' शीर्षक कविता में अभिव्यक्त राष्ट्रीय चेतना को रेखांकित कीजिए । 12. 'हल्दी घाटी' के पठित अंश का महत्व बताइए।

IGNOU BHDE-142 (January 2024 - July 2024) Assignment Questions

खंड - क निम्नलिखित पद्यांशों की ससंदर्भ व्याख्या कीजिये : 1. वे मोह - बन्धन - मुक्त थे, स्वच्छन्द थे सम्पूर्ण सुख-संयुक्त थे, वे शान्ति-शिखरासीन थे। मन से, वचन से कर्म से वे प्रभु भजन में लीन थे विख्यात ब्रह्मनन्द–नद के वे मनोहर मीन थे। उनके चतुर्दिक- कीर्ति-पट को है असम्भव नापना की दूर देशों में उन्होंने उपनिवेश - स्थापना । पहुँचे जहाँ वे अज्ञता का द्वार जानो रुक गया वे झुक गये जिस ओर को संसार मानो झुक गया । । 2. सूली का पथ ही सीखा हूँ सुविधा सदा बचाता आया मैं बलि-पथ का अंगारा हूँ जीवन-ज्वाल जलाता आया। एक फूँक, मेरा अभिमत है फूँक चलूँ जिससे नभ, जल, थल मैं तो हूँ बलि-धारा - पन्थी फेंक चुका कब का गंगाजल 3. अब न आ सके रात भयंकर ऐसा कुछ गति-चक्र चले फिर न अँधेरा छाये जग में चाल न कोई वक्र चले चमके स्वतंत्रता का सूरज परवशता का अभ्र टले शोषण के शासन की इति हो तुम ऐसा प्रण ठान, उठो उठो, उठो ओ नंगो भूखो ओ मजदूर किसान, उठो । 4. है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोंक ठेलता है जब नर पर्वत के जाते पाँव उखड़, मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है। गुन बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर, मेंहदी में जैसी लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो, बत्ती जो नहीं जलाता है. रोशनी नहीं वह पाता है। खंड - ख निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 500 शब्दों में दीजिए: 5. राष्ट्रीयता के विकास में आधुनिक भारतीय साहित्य के योगदान पर प्रकाश डालिए । 6. श्यामनारायण पाण्डेय के काव्य की मूल संवेदना को स्पष्ट कीजिए । 7. आधुनिक युग की विभिन्न परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए राजनीतिक एवं आर्थिक परिवेश की व्याख्या कीजिए । 8. मैथिलीशरण गुप्त के काव्य के सरंचना पक्ष पर विचार कीजिए । खंड - ग निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए : 9. हमारी सभ्यता' कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए । 10. 'विप्लव गायन' काव्य में समाज किस प्रकार रेखांकित हुआ है ? 11. श्यामनारायण पाण्डेय की राष्ट्रीय चेतना पर संक्षेप में प्रकाश डालिए । 12. 'कैदी और कोकिला' में कवि क्या संदेश देना चाहता है?
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