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IGNOU MHD-10 - Premchand ki Kahaaniyan

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प्रेमचंद की कहानियाँ

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IGNOU MHD-10 Code Details

  • University IGNOU (Indira Gandhi National Open University)
  • Title प्रेमचंद की कहानियाँ
  • Language(s)
  • Code MHD-10
  • Subject Hindi
  • Degree(s) MA
  • Course Optional Courses

IGNOU MHD-10 Hindi Topics Covered

Block 1 - प्रेमचंद की कहानियाँ

  • Unit 1 - भारतीय स्वाधीनता आंदोलन और प्रेमचंद की कहानियाँ
  • Unit 2 - स्त्री जीवन और प्रेमचंद
  • Unit 3 - दलित जीवन और प्रेमचंद
  • Unit 4 - किसान समस्या, सांप्रदायिकता की समस्या और प्रेमचंद

Block 2 - प्रेमचंद की कहानियाँ

  • Unit 1 - प्रेमचंद की कहानी-कला
  • Unit 2 - प्रेमचंद की कहानियाँ और हिंदी आलोचना
  • Unit 3 - ''मनोवृत्ति'': विश्लेषण और मूल्यांकन
  • Unit 4 - ''बूढ़ी काकी'': विश्लेषण और मूल्यांकन
  • Unit 5 - "बेटों वाली विधवा": विश्लेषण और मूल्यांकन

Block 3 - प्रेमचंद की कहानियाँ

  • Unit 1 - ‘नमक का दारोगा’: विश्लेषण और मूल्यांकन
  • Unit 2 - ‘विध्वंस’: विश्लेषण और मूल्यांकन
  • Unit 3 - ‘गुल्ली डंडा’: विश्लेषण और मूल्यांकन
  • Unit 4 - ‘जुलूस’: विश्लेषण और मूल्यांकन
  • Unit 5 - ‘समर-यात्रा’: विश्लेषण और मूल्यांकन

Block 4 - प्रेमचंद की कहानियाँ

  • Unit 1 - ''सुजान भगत'': विश्लेषण और मूल्यांकन
  • Unit 2 - ''दो बैलों की कथा'': विश्लेषण और मूल्यांकन
  • Unit 3 - ''सवा सेर गेहूं'': विश्लेषण और मूल्यांकन
  • Unit 4 - ''सद्गति'': विश्लेषण और मूल्यांकन
  • Unit 5 - ''कफ़न'': विश्लेषण और मूल्यांकन
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IGNOU MHD-10 (July 2024 - January 2025) Assignment Questions

1. निम्नलिखित में से किन्हीं दो की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए: (क) ऐसा काम ढूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो । मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है, जिससे सदैव प्यास मिटती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, उसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ । इस विषय में विवेक की बड़ी आवश्यकता है। मनुष्य को देखो, उसकी आवश्यकता को देखो और अवसर देखो, उसके उपरांत जो उचित समझो, करो। गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है। लेकिन बेगरज को दाँव पर पाना जरा कठिन है। इन बातों को निगाह में बाँध लो । यह मेरी जन्म भर की कमाई है। (ख) आज चालीस वर्षों से घर के प्रत्येक मामले में फूलमती की बात सर्वमान्य थी। उसने सौ कहा तो सौ खर्च किये गये, एक कहा तो एक! किसी ने मीन - मेख न की । यहाँ तक कि पं. अयोध्यानाथ भी उसकी इच्छा के विरूद्ध कुछ न करते थे; पर आज उसकी आँखों के सामने प्रत्यक्ष रूप से उसके हुक्म की उपेक्षा की जा रही है। इसे वह क्योंकर स्वीकार कर सकती ! (ग) शंकर ने साल भर तक कठिन तपस्या की, मीयाद के पहले रुपये अदा करने का उसने व्रत सा ले लिया। दोपहर को पहले भी चूल्हा न जलता था, चबेने पर बसर होती थी, अब वह भी बंद हुआ, केवल लड़के के लिए रात को रोटियाँ रख दी जातीं। पैसे रोज का तम्बाकू भी पी जाता था, यह एक व्यसन था, जिसका वह कभी त्याग न कर सका था। अब वह व्यसन भी इस कठिन व्रत की भेंट हो गया। उसने चिलम पटक दी, हुक्का तोड़ दिया और तम्बाकू की हाँड़ी चूरचूर कर डाली। कपड़े पहले भी त्याग की चरम सीमा तक पहुँच चुके थे, अब वह प्रकृति की न्यूनतम रेखाओं में आबद्ध हो गये। 2. प्रेमचंद की कहानियों में निहित राष्ट्रीय चेतना पर प्रकाश डालिए । 3. 'मंदिर' और 'सद्गति' कहानी के आधार पर प्रेमचंद के दलित जीवन संबंधी विचारों की विवेचना कीजिए । 4. प्रेमचंद की कहानियों में अभिव्यक्त जाति उन्मूलन की अवधारणा का विवेचन कीजिए । 5. प्रेमचंद की कहानियों के शिल्प-पक्ष पर विचार कीजिए । 6. प्रेमचंद की कहानी कला के मूल तत्वों को संक्षेप में समझाइये |

IGNOU MHD-10 (July 2023 - January 2024) Assignment Questions

1. निम्नलिखित में से किन्हीं दो की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए: (क) लाडली को काकी से अत्यंत प्रेम था। बेचारी भोली लड़की थी। बाल-विनोद और चंचलता की उसमें गंध तक न थी। दोनों बार जब उसके माता-पिता ने काकी को निर्द्धता से घसीटा तो लाडली का हृदय ऐंठ कर रह गया। वह झुंझला रही थी कि यह लोग काकी को क्यों बहुत-सी पुड़ियाँ नहीं दे देते। क्या मेहमान सब की सब खा जायेंगे? और यदि काकी ने मेहमानों के पहले खा लिया तो क्या बिगड़ जाएगा? वह काकी के पास जा कर उन्हें धैर्य देना चाहती थी, परंतु माता के भय से न जाती थी। उसने अपने हिस्से की पूरियाँ बिल्कुल न खायी थीं। अपनी गुड़िया की पिटारी में बन्द कर रक्खी थी। उन पूड़ियों को काकी के पास ले जाना चाहती थी। उसका हृदय अधीर हो रहा था! बूढ़ी काकी मेरी बात सुनते ही उठ बैठेंगी, पूरियाँ देख कर प्रसन्न होंगी ! मुझे खूब प्यार करेगी? (ख) पंडित अलोपीदीन का लक्ष्मी जी पर अखंड विश्वास था। वह कहा करते थे कि संसार का तो कहना ही क्या, स्वर्ग में भी लक्ष्मी का ही राज्य है। उनका यह कहना यथार्थ ही था। न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वह कैसे चाहती हैं नचाती है। लेटे ही लेटे गर्व से बोले चलो हम आते हैं। यह कह कर पंडित जी ने बड़ी निश्चिंता से पान के बीड़े लगा कर खाये। फिर लिहाफ ओढ़े हुए दरोगा के पास आ कर बोले, बाबू जी आशीर्वाद् कहिए. हमसे ऐसा कौन-सा अपराध हुआ कि गाड़ियाँ रोक दी गयीं। हम ब्राह्मणों पर तो आपकी कृपा-दृष्टि रहनी चाहिए। (ग) क्रिया के पश्चात् प्रतिक्रिया नैसर्गिक नियम है। शंकर साल भर एक तपस्या करने पर भी जब ऋण से मुक्त होने में सफल न हो सका तो उसका संयम निराशा के रूप में परिणत हो गया। उसने समझ लिया कि जब इतना कष्ट सहने पर भी साल भर में साठ रुपये से अधिक न जमा कर सका तो अब और कौन सा उपाय है जिसके द्वारा इसके दूने रुपये जमा हों। जब सिर पर ऋण का बोझ ही लादना है तो क्या मन भर का और क्या सवा मन का उसका उत्साह क्षीण हो गया, मिहनत से घृणा हो गयी। आशा उत्साह की जननी है, आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ति है। शंकर आशा-हीन होकर उदासीन हो गया । 2. प्रेमचंद की कहानियों में अभिव्यक्त राष्ट्रवाद को स्पष्ट कीजिए । 3. प्रेमचंद किसान समस्या को किस प्रकार देखते थे? उदाहरण सहित उत्तर दीजिए । 4. आलोचकों की दृष्टि में प्रेमचंद विषय पर एक निबंध लिखिए । 5. 'गुल्ली डंडा' कहानी का विश्लेषण करते हुए उसमें अभिव्यक्त जीवन मूल्य को रेखांकित कीजिए। 6. सुजान भगत कहानी का विश्लेषण करते हुए उसका मंतव्य स्पष्ट कीजिए ।
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