Get IGNOU Help Books Delivered in Delhi NCR within 4-6 Hours! Through BORZO, Order Now for Exam Success, Call us on 9350849407. (T&C Apply)

IGNOU MHD-14 - Hindi Upanyas-1 (Premchand Ka Vishesh Addhyan)

Bought By: 6983

Rating: 3.7

हिंदी उपन्यास-1 (प्रेमचंद का विशेष अध्ययन)

#1 Best Selling IGNOU MHD-14 Help-Book & Study-Guide in IGNOU Marketplaces.

Get Good Marks in your MA Hindi Programme in the Term-End Exams even if you are busy in your job or profession.

We've sold over 64,706,404 Help Books and Delivered 81,687,123 Assignments Since 2002.
As our customers will tell you...yes, it really result-oriented.

IGNOU MHD-14 Code Details

  • University IGNOU (Indira Gandhi National Open University)
  • Title हिंदी उपन्यास-1 (प्रेमचंद का विशेष अध्ययन)
  • Language(s) Hindi
  • Code MHD-14
  • Subject Hindi
  • Degree(s) MA
  • Course Optional Courses

IGNOU MHD-14 Hindi Topics Covered

Block 1 - प्रेमचन्द: व्यक्तित्व एवं कृतित्व

  • Unit 1 - प्रेमचंद का व्यक्तित्व एवं जीवन दृष्टि
  • Unit 2 - प्रेमचंद का साहित्य
  • Unit 3 - प्रेमचंद की साहित्यिक मान्यताएँ
  • Unit 4 - प्रेमचंद के उपन्यास और हिंदी उपन्यास

Block 2 - सेवासदन

  • Unit 1 - 'सेवासदन': अन्तर्वस्तु का विश्लेषण
  • Unit 2 - सेवासदन: शिल्प-संरचना (औपन्यासिक शिल्प)
  • Unit 3 - सेवासदन की नायिका (सुमन)

Block 3 - प्रेमाश्रम

  • Unit 1 - प्रेमाश्रम और कृषि-समस्या
  • Unit 2 - प्रेमाश्रमयुगीन भारतीय समाज और प्रेमचंद का आदर्शवाद
  • Unit 3 - 'प्रेमाश्रम' का औपन्यासिक शिल्प
  • Unit 4 - ज्ञानशंकर का चरित्र

Block 4 - रंगभूमि

  • Unit 1 - 'रंगभूमि' और औद्योगिकिकरण की समस्या
  • Unit 2 - 'रंगभूमि' पर स्वाधीनता आंदोलन और गाँधीवाद का प्रभाव
  • Unit 3 - 'रंगभूमि' का औपन्यासिक शिल्प
  • Unit 4 - सूरदास का चरित्र

Block 5 - गबन

  • Unit 1 - 'गबन' और राष्ट्रीय आंदोलन
  • Unit 2 - 'गबन' और मध्यवर्गी समाज
  • Unit 3 - 'गबन'' का औपन्यासिक शिल्प
Buy MHD-14 Help Book

IGNOU MHD-14 (July 2024 - January 2025) Assignment Questions

1. निम्नलिखित गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए: (क) "मैं उन बहू-बेटियों में नहीं हूँ। मेरा जिस वक्त जी चाहेगा, जाऊँगी, जिस वक्त जी चाहेगा, आऊँगी। मुझे किसी का डर नहीं है। जब यहाँ कोई मेरी बात नहीं पूछता, तो मैं भी किसी को अपना नहीं समझती। सारे दिन अनाथों की तरह पड़ी रहती हूँ। कोई झाँकता तक नहीं। मैं चिड़िया नहीं हूँ, जिसका पिंजड़ा दाना-पानी रखकर बंद कर दिया जाय। मैं भी आदमी हूँ। अब इस घर में मैं क्षण-भर न रुकूँगी। अगर कोई मुझे भेजने न जायगा, तो अकेली चली जाऊँगी। राह में कोई भेड़िया नहीं बैठा है, जो मुझे उठा ले जाएगा और उठा भी ले जाए, तो क्या गम । यहाँ कौन-सा सुख भोग रही हूँ ।" (ख) "लज्जा अत्यंत निर्लज्ज होती है। अंतिम काल में भी जब हम समझते हैं कि उसकी उलटी साँस चल रही हैं, वह सहसा चैतन्य हो जाती है और पहले से भी अधिक कर्त्तव्यशील हो जाती है। हम दुरवस्था में पड़कर किसी मित्र से सहायता की याचना करने को घर से निकलते हैं, लेकिन मित्र से आँखें चार होते ही लज्जा हमारे सामने आकर खड़ी हो जाती है और हम इधर-उधर की बातें करके लौट आते हैं। यहाँ तक कि हम एक शब्द भी ऐसा मुँह से नहीं निकलने देते, जिसका भाव हमारी अंतर्वेदना का द्योतक हो । (ग) “अब तक उमानाथ ने सुमन के आत्मपतन की बात जाह्नवी से छिपायी थी। वह जानते थे कि स्त्रियों के पेट में बात नहीं पचती। यह किसी-न-किसी से अवश्य ही कह देगी और बात फैल जाएगी। जब जाह्नवी के स्नेह व्यवहार से वह प्रसन्न होते, तो उन्हें उससे सुमन की कथा कहने की बड़ी तीव्र आकांक्षा होती हृदय सागर तरंगें उठने लगतीं, लेकिन परिणाम को सोचकर रुक जाते थे। आज कृष्णचन्द्र की कृतघ्नता और जाह्नवी की स्नेहपूर्ण बातों ने उमानाथ को निःशंक कर दिया, पेट में बात न रुक सकी। जेसे किसी नाली में रुकी हुई वस्तु भीतर से पानी का बहाव पाकर बाहर निकल पड़े उन्होंने जाह्नवी से सारी कथा बयान कर दी। जब रात को उनकी नींद खुली तो उन्हें अपनी भूल दिखाई दी, पर तीर कमान से निकल चुका था।" (घ) "तुम इस भ्रम में पड़े हुए हो कि मनुष्य अपने भाग्य का विधाता है। यह सर्वथा मिथ्या है। हम तकदीर के खिलौने हैं, विधाता नहीं। वह हमें अपने इच्छानुसार नचाया करती है। तुम्हें क्या मालूम है कि जिसके लिए तुम सत्यासत्य में विवेक नहीं करते, पुण्य और पाप को समान समझते हो, वह उस शुभ मुहूर्त तक सभी विघ्न-बाधाओं से सुरक्षित रहेगा? सम्भव है। कि ठीक उस समय जब जायदाद पर उसका नाम चढ़ाया जा रहा हो एक फुंसी उसका तमाम कर दे। यह न समझो कि मैं तुम्हारा बुरा चेत रहा हूँ। तुम्हें आशाओं की असारता का केवल एक स्वरूप दिखाना चाहता हूँ। मैंने तकदीर की कितनी ही लीलाएँ देखी हैं और स्वयं उसका सताया हुआ हूँ। उसे अपनी शुभ कल्पनाओं के साँचे में ढालना हमारी सामर्थ्य से बाहर है।" 2. 'प्रेमचंद की पत्रकारिता दृष्टि पर प्रकाश डालिए । 3. 'प्रेमाश्रम' के औपन्यासिक शिल्प का विवेचन कीजिए। 4. 'रंगभूमि' में आदर्शवाद किस रूप में व्यक्त हुआ है? विचार कीजिए । 5. सेवासदन के रचनात्मक उद्देश्य पर प्रकाश डालिए । 6. निम्नलिखित विषयों पर टिप्पणी लिखिए: (क) प्रेमचंद की कहानी कला (ख) प्रेमचंद की नारी दृष्टि (ग) रंगभूमि' की भाषा (घ) देवीदीन का चरित्र चित्रण

IGNOU MHD-14 (July 2023 - January 2024) Assignment Questions

1. निम्नलिखित गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए: (क) मेरे सिर कलंक का टीका लग गया और वह अब धोने से नहीं धुल सकता। मैं उसको या किसी को दोष क्यों दूं? यह सब मेरे कर्मों का फल है। आह! एड़ी में कैसी पीड़ा हो रही है; यह कांटा कैसे निकलेगा? भीतर उसका एक टुकड़ा टूट गया है। कैसा टपक रहा है। नहीं मैं किसी को दोष नहीं दे सकती। बुरे कर्म तो मैंने किए हैं, उनका फल कौन भोगेगा। विलास-लालसा ने मेरी यह दुर्गति की। मैं कैसी अंधी हो गई थी, केवल इन्द्रियों के सुख भोग के लिए अपनी आत्मा का नाश कर बैठी! मुझे कष्ट अवश्य था । मैं गहने-कपड़े को तरसती थी, अच्छे भोजन को तरसती थी, प्रेम को तरसती थी। (ख) तुम्हें क्या मालूम है कि जिसके लिए तुम सत्यासत्य में विवेक नहीं करते, पुण्य और पाप को समान समझते हो, वह उस शुभ मुहूर्त तक सभी विघ्न-बाधाओं से सुरक्षित रहेगा? सम्भव है ठीक उस समय जब जायदाद पर उसका नाम चढ़ाया जा रहा हो एक फुन्सी उसका तमाम कर दे। यह न समझो कि मैं तुम्हारा बुरा चेत रहा हूँ। तुम्हें आशाओं की असारता का केवल एक स्वरूप दिखाना चाहता हू। मैंने तकदीर की कितनी ही लीलाएँ देखी हैं और स्वयं उसका सताया हुआ हूँ । (ग) तुम खेल में निपुण हो, हम अनाड़ी हैं। बस इतना ही फरक है। तालियाँ क्यों बजाते हो, यह जीतने वालों का धरम नहीं ? तुम्हारा धरम तो है हमारी पीठ ठोकना। हम हारे, तो क्या, मैदान से भागे तो नहीं, रोये तो नहीं, धाँधली तो नहीं की। फिर खेलेंगे, ज़रा दम ले लेने दो, हार-हार कर तुम्हीं से खेलना सीखेंगे और एक-न-एक दिन हमारी जीत होगी, जरूर होगी। (घ) मानव-जीवन की सबसे महान घटना कितनी शांती के साथ घटित हो जाती है। यह विश्व का एक महान् अंग, वह महत्त्वाकांक्षाओं का प्रचंड सागर, वह उद्योग का अनंत भांडार, वह प्रेम और द्वेष, सुख और दुःख का लीला - क्षेत्र, वह बुद्धि और बल की रंगभूमि न जाने कब और कहाँ लीन हो जाती है, किसी को खबर नहीं होती। 2. 'प्रेमचंद' पर उनकी समकालीन आलोचना का विवरण प्रस्तुत करते हुए उसका मूल्यांकन कीजिए। 3. सुमन के चरित्र की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए । 4. 'रंगभूमि' में आदर्शवाद किस रूप में व्यक्त हुआ है ? विचार कीजिए । 5. औपन्यासिक शिल्प की दृष्टि से 'गबन का मूल्यांकन कीजिए। 6. निम्नलिखित विषयों पर टिप्पणी लिखिए: (क) प्रेमशंकर का चरित्र (ख) 'सेवासदन' की अंतर्वस्तु (ग) गबन पर नवजागकरण का प्रभाव (घ) प्रेमचंद के उपन्यास संबंधी विचार
Buy MHD-14 Assignment

Related Codes