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IGNOU MHD-02 (July 2024 – January 2025) Assignment Questions
1. भारतेंदु की कविता में राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है । सोदाहरण स्पष्ट कीजिए ।
2. साकेत लिखने की प्रेरणा गुप्त जी को कहाँ से प्राप्त हुई है? यह काव्य किस श्रेणी का है इसका औचित्य को सिद्ध किजिए ।
3. “निराला राग और विराग के कवि हैं इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए ।
4. अज्ञेय की काव्य भाषा का वैशिष्ट्य बताइए ।
5. निम्नलिखित पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए ।
(क) सब गुरुजन को बुरो बतावै ।
अपनी खिचड़ी अलग पकावै ।
भीतर तत्व न झूठी तेजी ।
क्यों सखि सज्जन नहिं अंगरेजी ।
तीन बुलाए तेरह आवैं।
निज निज बिपता रोई सुनावैं ।
आँखों फूटे भरा न पेट ।
क्यों सखि सज्जन नहिं ग्रेजुएट ।
(ख) विषमता की पीड़ा से व्यस्त
हो रहा स्पंदित विश्व महान;
यही दुख सुख विकास का सत्य
यही भूमा का मधुमय दान ।
नित्य समरसता का अधिकार,
उमड़ता कारण जलधि समान;
व्यथा से नीली लहरों बीच
बिखरते सुख मणि गण द्युतिमान |
(ग) है अमानिशा उगलता गगन घन अन्धकार;
खो रहा दिशा का ज्ञान; स्तब्ध है पवर-चार;
अप्रतिहत गरज रहा पीछे अम्बुधि विशाल;
भूधर ज्यों धन-मग्न; केवल जलती मशाल ।
स्थिर राघवेन्द्र को हिला रहा फिर-फिर संशय,
रह-रह उठता जग जीवन में रावण-जय-जय;
जो नहीं हुआ आज तक हृदय रिपु-दम्य – श्रान्त
एक भी, अयुत-लक्ष में रहा जो दुराक्रान्त
कल लड़ने को हो रहा विकल वार बार-बार
असमर्थ मानता मन उद्यत हो हार-हार ।
IGNOU MHD-02 (July 2023 – January 2024) Assignment Questions
1. समाज सुधार की दृष्टि से भारतेंदु की कविताओं के महत्त्व पर प्रकाश डालिए ।
2. “उर्मिला जी को गुप्त जी ने पुनःजीवित किया है इस कथन की समीक्षा कीजिए।
3. “वेदना महादेवी के काव्य का स्थायी भाव है।” इस कथन की व्याख्या करें।
4. दिनकर के काव्य में सौंदर्य और प्रेम का स्वर मुखरित हुआ है, सोदाहरण विवेचना कीजिए।
5. निम्नलिखित पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
(क) रोवहु सब मिलि के आवहु भारत भाई।
हा हा! भारत दुर्दशा न देखी जाई ।।
सबके पहिले जेहि ईश्वर धन बल दीनो
सबके पहिले जेहि सभ्य विधाता कीनो ।।
सबके पहिले जो रूप रंग रस भीनो
सबके पहिले विद्याफल जिन गहि लीनो ।।
अब सबके पीछे सोई परत लखाई।
हा हा भारत दुर्दशा न देखी जाई ।।
(ख) दुःख की पिछली रजनी बीच
विकसता सुख का नवल प्रभात:
एक परदा यह झीना नील
छिपाये है जिसमें सुख गात।
जिसे तुम समझे हो अभिशाप,
जगत की ज्वालाओं का मूल
ईश का वह रहस्य वरदान
कभी मत इसको जाओ भूल
(ग) हमारे निज सुख, दुख निःश्वास
तुम्हें केवल परिहास,
तुम्हारी ही विधि पर विश्वास
हमारा चार आश्वास
आये अनंत हृत्कंप ! तुम्हारा अविरत स्पंदन
सृष्टि शिराओं में सञ्चारित करता जीवन
खोल जगत के शत-शत नक्षत्रों से लोचन
भेदन करते अहंकार तुम जग का क्षण-क्षण
सत्य तुम्हारी राज यष्टि, सम्मुख नत त्रिभुवन,
भूप अकिंचन
अटल शास्ति नित करते पालन !